2023 में Gandhi Jayanti: ऐसे गांधी ने इंग्लैंड से भारत की आजादी तक का रास्ता तय किया

इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई करके भारत लौटे मोहनदास करमचंद गांधी को बैरिस्टर का दर्जा मिला। वह राजकोट में ही वकालत करेंगे, लेकिन दोस्तों की सलाह पर उन्होंने मुंबई में वकालत करने का निर्णय लिया। गांधीजी को परिवार के सदस्यों ने बताया कि तजुर्बा किसी भी क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण है।दिल्ली, वेब डेस्क। आज गांधीजी की 154वीं जयंती देश भर में मनाई जा रही है। बापू ने न सिर्फ भारत को अंग्रेजों से आजाद कराया, बल्कि अहिंसा से युद्ध जीतने का लोहा भी मनवाया। गांधी आज एक विचारधारा है, न कि एक नाम।इसलिए आपने गांधीजी की महानता और सादगी का बखान करने के लिए कई कहानियां सुनी होंगी। लेकिन आज हम आपको उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण कहानी बता रहे हैं। यह कहानी उस समय की है जब गांधीजी ने वकालत करना शुरू किया था।

हम जानते हैं कि गांधी ने कानून का अध्ययन किया था। वह विदेश से पढ़े हुए थे, लेकिन भारत में वकालत की प्रक्रिया से अनजान थे। वे देश की अदालतों में जिरह करने का कोई अनुभव नहीं रखते थे। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा, या सत्य के प्रयोग, में अपने करियर के इस चरण का भी उल्लेख किया है।इंग्लैड से लौटने के बाद काम की तलाश शुरू हुई

2023 में Gandhi Jayanti ऐसे गांधी ने इंग्लैंड से भारत की आजादी तक का रास्ता तय किया
2023 में Gandhi Jayanti ऐसे गांधी ने इंग्लैंड से भारत की आजादी तक का रास्ता तय किया

 

दरअसल, मोहनदास करमचंद गांधी इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई करके भारत लौटे तो बैरिस्टर कहलाए। वह राजकोट में ही वकालत करना चाहते थे, लेकिन दोस्तों की सलाह पर उन्होंने मुंबई में वकालत करने का निर्णय लिया।

गांधी जी ने परिवार के लोगों को बताया कि किसी भी क्षेत्र में अनुभव बहुत मायने रखता है, इसलिए उन्होंने वकालत की ओर रुख ले लिया और अपने करियर को एक नई दिशा देने के लिए अनुभव प्राप्त किया, हालांकि अदालत में जिरह करने के लिए प्रैक्टिस महत्वपूर्ण है।

मेरी स्थिति ससुराल गई बहू की तुलना में बदल गई: महात्माजी

गांधी अपनी आत्मकथा “सत्य के प्रयोग” में लिखते हैं कि बैरिस्टर की तख्ती तो लटका दी, लेकिन मुकदमा लड़ने का साहस नहीं जुटा पाया। मेरी हालत ससुराल गई नई बहू की तरह हो गई।

गांधीजी को मुंबई के न्यायालय के नियमों से भी परिचित कराया गया। Gandhi को बताया गया कि मुकदमों के लिए दलालों को भी पैसा देना होगा। आपको भी कमीशन देना होगा क्योंकि कोर्ट का सबसे बड़ा नेता, जो मासिक तीन से चार हजार रुपये कमाता है, कमीशन देता है। गांधी जी ने इसे स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया और अंत तक अपने इस विचार पर अडिग रहे। बाद में उन्हें एक केस मिला, जिसका मेहनताना ३० रुपए था।

 

पांव पहले केस में ही कांपने लगे

गांधी जी का पहला मुकदमा ममीबाई का था, जो मुंबई की छोटी अदालत, यानी स्मॉल कॉज कोर्ट में था। जिसमें उन्हें अपने विरोधी से बहस करनी पड़ी। सत्य का उपयोग करते हुए वह लिखते हैं, मैं खड़ा हुआ लेकिन पांव कांपने लगे, चक्कर आने लगे। ऐसा लगा कि अदालत चल रही है। जज निश्चित रूप से हंसा होगा, क्योंकि कोई सवाल समझ में नहीं आ रहा था। वकीलों को खुशी हुई होगी। लेकिन मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाया था; मैं क्या ही देखता! वह तत्काल बैठ गया। मैंने कहा कि मैं नहीं होगा। फिस वापस ले आओ। उस समय मुवक्किल विजेता था..।

वह आगे लिखते हैं, “उस समय मैंने हार महसूस किया, मैं बहुत शरमाया, और मैंने तय किया कि जब तक मैं पूरी तरह साहस न पाऊंगा, मैं कोई मुकदमा नहीं लूंगा।””

पैसे बचाने के लिए पैदल चलते थे

इससे परिवार की आर्थिक स्थिति और खराब हुई। गांधीजी उन दिनों जेल में रहा करते थे और हाई कोर्ट में आते-जाते अक्सर ट्रॉम या गाड़ी भाड़े पर पैसा खर्च करते थे। वह अक्सर पैदल ही यात्रा करते थे। उन्होंने लगभग छह महीने तक मुंबई में रहकर थककर वापस राजकोट आए। यहां उनकी अर्जी दावे लिखने की प्रक्रिया आराम से चली गई। गांधी जी के भाई को पोरबंदर की एक मेमन फर्म से एक संदेश मिल गया। उसने कहा कि हम दक्षिण अफ्रीका में एक बड़े मुकदमे में हैं। भाई को भेजें।

अफ्रीका से आगे की राह

1915 में, गांधी जी ने स्टीमर से अफ्रीका की ओर प्रस्थान किया और यहीं से उनका आगे का राजनीतिक, सामाजिक और सेवा का सफर शुरू हुआ। जहां उन्होने पहले दक्षिण भारत में सेवा की और फिर भारत में हिंसा के खिलाफ आजादी की आवाज उठाई

सत्य का उपयोग करके जीवन का धरातल

सत्य का उपयोग करते समय, गांधी जी ने अपने जीवन से जुड़े सच्चे तथ्यों को सामने रखने से कोई कतरा नहीं देखा। हम भी जानते हैं कि गांधीजी का जीवन सच और ईश्वर पर विश्वास पर आधारित था, जो उनकी आत्मकथा में सबसे बड़ा प्रभाव था। गांधी जी ने सत्याग्रह और अंहिसा को सबसे बड़ा हथियार समझा और अपने कर्मों और उपलब्धियों को ईश्वर की मर्जी समझा।

गांधी ने धर्मों की जिरह कभी नहीं की। सत्य का उपयोग करते हुए, गांधी ने न तो किसी धर्म की बुराई की और न ही किसी धर्म की भलाई की; उन्होंने गीता, कुरान या बाईवल में कोई भेद नहीं मानते थे और सिर्फ इंसानियत को प्राथमिकता दी. शायद यही कारण है कि आज भी लोग गांधीजी को आदर और सम्मान देते हैं। दैनिक जागरण परिवार महात्मा गांधी जी की 154वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देता है।

यह भी पढ़ें: WORLD CUP 2023: वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम का ऐलान, ये स्टार ऑलराउंडर बाहर

Leave a Comment