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तीन-भाषा विवाद और परिसीमन पर महाभारत! क्या दक्षिण भारत के साथ अन्याय हो रहा है?

By: rishabh

On: Friday, March 28, 2025 4:41 AM

तीन-भाषा विवाद और परिसीमन पर महाभारत! क्या दक्षिण भारत के साथ अन्याय हो रहा है?
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देश में भाषा और क्षेत्र के आधार पर राजनीति हमेशा से चर्चा का विषय रही है। इस बार, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच तीखी बयानबाजी हो रही है। तीन-भाषा विवाद और परिसीमन (Delimitation) को लेकर उठे इस मुद्दे ने केंद्र और दक्षिण भारत के राज्यों के बीच नए तनाव को जन्म दिया है।

तीन-भाषा विवाद: तमिलनाडु बनाम केंद्र सरकार

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तमिलनाडु की डीएमके सरकार लंबे समय से केंद्र सरकार द्वारा थोपी जा रही भाषाई नीतियों का विरोध करती रही है। खासतौर पर, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत हिंदी को थोपने के प्रयासों पर तमिलनाडु सरकार ने सख्त रुख अपनाया है। स्टालिन ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार किसी भी भाषा का विरोध नहीं करती, लेकिन जबरदस्ती भाषा थोपे जाने और भाषाई अहंकार (Chauvinism) का विरोध जरूर करती है।

योगी आदित्यनाथ ने इस मुद्दे पर डीएमके पर निशाना साधते हुए कहा कि एमके स्टालिन अपनी वोट बैंक की राजनीति के चलते भाषा और क्षेत्र के नाम पर विभाजन की राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि तमिल भाषा भारत की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है और इसे पूरा देश सम्मान देता है, फिर हिंदी से इतनी नफरत क्यों?

स्टालिन ने इसके जवाब में कहा कि बीजेपी इस मुद्दे पर “भ्रमित” है और तमिलनाडु की दो-भाषा नीति और परिसीमन को लेकर उठाए गए सवालों से घबराई हुई है। उन्होंने योगी के बयान को “काली राजनीतिक कॉमेडी” करार देते हुए कहा कि डीएमके किसी भी भाषा से नफरत नहीं करती, बल्कि जबरदस्ती भाषा थोपने की मानसिकता का विरोध करती है।

परिसीमन पर विवाद: क्या दक्षिण भारत को नुकसान होगा?

तमिलनाडु और दक्षिण भारत के अन्य राज्यों के लिए परिसीमन एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। 2026 के बाद होने वाले इस परिसीमन से दक्षिण के राज्यों को संसदीय सीटों के मामले में नुकसान हो सकता है। स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों ने परिवार नियोजन (Population Control) को प्रभावी रूप से लागू किया है, जिससे इन राज्यों की जनसंख्या नियंत्रण में रही है। लेकिन यदि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर किया जाता है, तो उत्तर भारतीय राज्यों की सीटें बढ़ेंगी और दक्षिण भारतीय राज्यों की हिस्सेदारी संसद में कम हो जाएगी।

तमिलनाडु सरकार का मानना है कि यह नीति उन राज्यों के खिलाफ जाएगी जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण को प्रभावी ढंग से लागू किया है और देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान दिया है। स्टालिन ने कहा कि इससे दक्षिण भारत को संसदीय प्रतिनिधित्व के मामले में नुकसान होगा, जबकि उत्तर भारत को फायदा होगा।

बीजेपी का पलटवार: “डीएमके मुद्दे को राजनीतिक रंग दे रही है”

बीजेपी ने डीएमके पर आरोप लगाया कि वह इस मुद्दे को बेवजह तूल देकर राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि देश की एकता को मजबूत करना सभी की जिम्मेदारी है और भाषा के नाम पर राजनीति करना सही नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि देश की सभी भाषाओं को महत्व दिया जाना चाहिए और हर भारतीय को कम से कम तीन भाषाएं सीखनी चाहिए ताकि संचार में आसानी हो।

योगी आदित्यनाथ ने कहा, “जब इन लोगों को लगता है कि उनका वोट बैंक खतरे में है, तो वे भाषा और क्षेत्र के नाम पर मतदाताओं को बांटने की कोशिश करते हैं। देश के लोगों को ऐसी विभाजनकारी राजनीति से सतर्क रहना चाहिए और देश की एकता के लिए खड़े रहना चाहिए।”

स्टालिन का करारा जवाब: “यह सम्मान और न्याय की लड़ाई है”

स्टालिन ने योगी आदित्यनाथ के इस बयान का जवाब देते हुए कहा कि तमिलनाडु की नीति केवल भाषाई थोपने के खिलाफ है, न कि किसी विशेष भाषा के खिलाफ। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा,

“तमिलनाडु का दो-भाषा नीति और परिसीमन पर लिया गया रुख पूरे देश में गूंज रहा है, और बीजेपी इससे घबराई हुई है। और अब योगी आदित्यनाथ हमें नफरत पर भाषण देना चाहते हैं? हमें माफ करें, लेकिन यह विडंबना नहीं, बल्कि काली राजनीतिक कॉमेडी का सबसे गहरा रूप है। हम किसी भी भाषा का विरोध नहीं करते, लेकिन थोपे जाने और भाषाई अहंकार का विरोध करते हैं। यह वोटों के लिए दंगे भड़काने की राजनीति नहीं है, बल्कि सम्मान और न्याय की लड़ाई है।”

निष्कर्ष

तीन-भाषा विवाद और परिसीमन को लेकर डीएमके और बीजेपी के बीच खींचतान लगातार बढ़ती जा रही है। जहां डीएमके इसे तमिलनाडु के आत्मसम्मान और न्याय की लड़ाई बता रही है, वहीं बीजेपी इसे क्षेत्रीय और भाषाई राजनीति का हिस्सा मान रही है।

भाषा को लेकर राजनीति कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों में इस विवाद का क्या असर पड़ेगा। क्या दक्षिण भारत की मांगों को सुना जाएगा? या फिर यह विवाद भी एक राजनीतिक बहस बनकर रह जाएगा? जवाब भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एक बात साफ है—भारत में भाषा का मुद्दा सिर्फ संवाद का नहीं, बल्कि पहचान और सत्ता संतुलन का भी है।

प्रश्न उत्तर

प्रश्न. तीन-भाषा विवाद क्या है?

उत्तर. तीन-भाषा विवाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के विरोध से जुड़ा है, जिसका तमिलनाडु सहित कई दक्षिणी राज्य विरोध कर रहे हैं।

प्रश्न. तमिलनाडु तीन-भाषा नीति का विरोध क्यों कर रहा है?

उत्तर. तमिलनाडु सरकार का मानना है कि हिंदी को थोपना भाषाई अहंकार है और यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ है।

प्रश्न. परिसीमन (Delimitation) विवाद क्या है?

उत्तर. 2026 के बाद होने वाले परिसीमन से दक्षिणी राज्यों की संसदीय सीटें घट सकती हैं, क्योंकि वहां की जनसंख्या नियंत्रण में है, जबकि उत्तर भारत की सीटें बढ़ सकती हैं।

प्रश्न. बीजेपी और डीएमके के बीच इस मुद्दे पर क्या विवाद है?

उत्तर. बीजेपी तीन-भाषा नीति को देश की एकता के लिए जरूरी मानती है, जबकि डीएमके इसे तमिलनाडु के अधिकारों और सम्मान के खिलाफ बताकर विरोध कर रही है।

प्रश्न. इस विवाद का देश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?

उत्तर. यह विवाद क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित कर सकता है, खासकर दक्षिणी राज्यों में, जहां बीजेपी के लिए राजनीतिक चुनौतियां बढ़ सकती हैं।

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