राजस्थान में 2024 विधानसभा उपचुनाव को लेकर भाजपा के अंदर उथल-पुथल शुरू हो गई है। पार्टी ने सात विधानसभा सीटों में से छह पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है, लेकिन इनमें से चार सीटों पर खुलकर बगावत देखने को मिल रही है। पार्टी के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण होती जा रही है, खासकर देवली-उनियारा, झुंझुनूं और रामगढ़ सीटों पर, जहां स्थानीय नेताओं ने खुले तौर पर अपने असंतोष को जाहिर किया है।
देवली-उनियारा सीट पर भाजपा द्वारा घोषित प्रत्याशी के खिलाफ बगावत के सुर तेज हो गए हैं। स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं का मानना है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने यहां की जमीनी हकीकत को नजरअंदाज किया है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रत्याशी का चयन स्थानीय नेतृत्व के सुझावों को ध्यान में रखकर नहीं किया गया है, जिससे नाराजगी फैल रही है।
झुंझुनूं सीट पर भी इसी प्रकार की स्थिति है, जहां स्थानीय नेताओं ने पार्टी द्वारा घोषित प्रत्याशी के खिलाफ खुलकर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि पार्टी ने यहां पर बाहरी उम्मीदवार को टिकट दिया है, जिससे स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में आक्रोश फैल गया है। इन नेताओं का मानना है कि टिकट वितरण में क्षेत्रीय संतुलन और जातीय समीकरणों का ध्यान नहीं रखा गया, जिससे पार्टी को यहां चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
रामगढ़ सीट पर भी भाजपा के सामने इसी तरह की स्थिति है। यहां के स्थानीय नेताओं ने पार्टी के फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है कि टिकट वितरण में स्थानीय उम्मीदवारों को नजरअंदाज किया गया है, जो पार्टी की जमीनी पकड़ को कमजोर कर सकता है। इस सीट पर भी बाहरी उम्मीदवार को मौका दिए जाने से असंतोष बढ़ रहा है, और स्थानीय कार्यकर्ताओं का पार्टी नेतृत्व पर विश्वास डगमगा रहा है।
हालांकि, भाजपा ने सलूंबर सीट पर थोड़ी राहत पाई है। यहां बगावती तेवर अपनाने वाले नरेन्द्र मीणा को मना लिया गया है। पार्टी नेताओं और मीणा के बीच बैठकों के बाद मामला सुलझा लिया गया है, और अब मीणा पार्टी के समर्थन में हैं। यह भाजपा के लिए राहत की खबर है, क्योंकि सलूंबर सीट पर स्थानीय प्रभावी नेता के बगावती तेवरों से पार्टी की स्थिति कमजोर हो सकती थी।
इन उपचुनावों में बगावत भाजपा के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकती है। पार्टी नेतृत्व ने प्रत्याशियों के चयन में अपनी रणनीति बनाई है, लेकिन स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं का असंतोष बढ़ता जा रहा है। अगर पार्टी इन बगावती नेताओं को जल्द नहीं मना पाती, तो उपचुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है। वहीं, इन सीटों पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को इसका सीधा फायदा मिल सकता है।
टिकटों की घोषणा के बाद से भाजपा में बगावत का माहौल बना हुआ है, और पार्टी नेतृत्व इसे नियंत्रित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने स्थिति को संभालने के लिए मोर्चा संभाल लिया है। पार्टी के ये प्रमुख नेता उन सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जहां बगावत सबसे अधिक है और मजबूत बागियों को मनाने की कोशिश की जा रही है।
कुछ सीटों पर बागियों को मनाने में सफलता मिली है, लेकिन कई जगहों पर अभी भी डैमेज कंट्रोल का काम जारी है। सलूंबर में नरेन्द्र मीणा जैसे बागियों को मनाने में कामयाबी मिली है, जबकि अन्य सीटों पर अभी भी स्थिति गंभीर बनी हुई है। पार्टी की कोशिश है कि बागी नेताओं के असंतोष को शांत किया जाए और चुनावी माहौल को अपने पक्ष में किया जाए। अगर समय रहते यह मुद्दा हल नहीं होता है, तो उपचुनाव में इसका सीधा असर भाजपा की संभावनाओं पर पड़ सकता है।
डैमेज कंट्रोल की सीएम ने संभाली कमान
गौरतलब है कि इन उपचुनावों में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की साख दांव पर लगी है, क्योंकि उनके मुख्यमंत्री बनने के 10 माह बाद यह पहला बड़ा चुनावी परीक्षण है। इसे सरकार के लिए लिटमस टेस्ट के रूप में देखा जा रहा है, जहां जनता सरकार के कामकाज का मूल्यांकन करेगी। चुनावी परिणाम से यह भी स्पष्ट होगा कि सरकार ने इस दौरान कितनी प्रभावी नीतियां और योजनाएं लागू की हैं और जनता का कितना समर्थन हासिल किया है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए यह चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए उन्होंने खुद ही चुनावी कमान संभाल ली है। पार्टी के भीतर बगावत और असंतोष को शांत करने के साथ-साथ उपचुनावों में जीत सुनिश्चित करना उनकी प्राथमिकता है। इन परिणामों से राज्य की राजनीति पर भी दूरगामी असर पड़ सकता है, जो सरकार की स्थिरता और भविष्य की दिशा को तय करेगा।
इस चुनावी कड़ी में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा लगातार नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। टिकट न मिलने से नाराज हुए सलूंबर के दावेदार नरेंद्र मीणा से सीएम ने मुलाकात की और उनकी नाराजगी दूर कर दी। मुलाकात के बाद मीणा ने कहा कि वे पार्टी के प्रति समर्पित हैं और अब पूरी मेहनत के साथ पार्टी की प्रत्याशी को जिताने में जुट जाएंगे।
गौरतलब है कि टिकट न मिलने के बाद नरेंद्र मीणा रविवार को अपने समर्थकों के बीच पहुंचे थे, जहां अपने भाषण के दौरान भावुक हो गए और फूट-फूट कर रोने लगे थे। हालांकि, मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद उनका मनोबल वापस लौटा है और वे अब पार्टी के लिए काम करने को तैयार हैं, जिससे पार्टी को एक बड़ा झटका लगने से बच गया।
सीएम ने बनाई ये रणनीति
टिकट नहीं मिलने से नाराज बागी नेताओं को मनाने के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने मिलकर रणनीति बनाई है। उन्होंने तय किया है कि हर विधानसभा सीट पर प्रभारी मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी दी जाएगी कि एक भी बागी नेता न बचे। इसके लिए झुंझुनूं में प्रभारी मंत्री अविनाश गहलोत, देवली-उनियारा में मंत्री हीरालाल नागर और रामगढ़ में गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढ़म को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
इसके अलावा, कुछ वरिष्ठ नेताओं को भी पर्दे के पीछे से नाराज बागियों को मनाने का काम सौंपा गया है। यह कदम पार्टी के भीतर चल रही बगावत को शांत करने के लिए उठाया गया है, ताकि आगामी उपचुनाव में एकजुट होकर चुनाव लड़ा जा सके।
कांग्रेस में लिस्ट से पहले ही बगावत
कांग्रेस में टिकटों की घोषणा से पहले ही बगावत शुरू हो गई है। युवा नेता नरेश मीणा ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। सोमवार को उन्होंने जयपुर में बड़ा प्रदर्शन किया, जिसमें उनके समर्थकों ने पीसीसी वॉर रूम के बाहर जमकर नारेबाजी की। नरेश मीणा की नाराजगी टिकट नहीं मिलने की आशंका को लेकर है, जिससे पार्टी के अंदर खलबली मची हुई है।
इसके अलावा, झुंझुनू विधानसभा सीट पर मुस्लिम न्याय मंच के कार्यकर्ता अल्पसंख्यक समुदाय को टिकट देने की मांग कर रहे हैं। इस मांग को लेकर कांग्रेस नेता और मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष एमडी चौपदार ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस वॉर रूम के बाहर बड़ा प्रदर्शन किया। कांग्रेस को इन आंतरिक असंतोषों का सामना करना पड़ रहा है, जो आगामी चुनाव में चुनौतियां खड़ी कर सकता है।
इन सीटों पर होगा उपचुनाव
राजस्थान में 13 नवंबर को सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, जिनमें रामगढ़ (अलवर), दौसा, झुंझुनूं, देवली-उनियारा, खींवसर, चौरासी और सलूंबर शामिल हैं। 2023 के विधानसभा चुनावों में इनमें से भाजपा के पास केवल एक सीट थी, जबकि कांग्रेस के पास चार सीटें थीं। इसके अलावा, एक सीट बाप और एक सीट राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के पास थी।
उपचुनावों का यह दौर राज्य की सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों दोनों के लिए अहम साबित हो सकता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों को अपने बागियों को शांत करने और मजबूत रणनीति बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। ये उपचुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार के लिए भी एक लिटमस टेस्ट माने जा रहे हैं, क्योंकि उनके कार्यकाल के दस महीने बाद यह पहला बड़ा चुनावी मुकाबला है।