उत्तर प्रदेश ने एनटीसीए के निर्देशों की अवहेलना करते हुए टाइगर रिजर्व के कोर जोन में इको-टूरिज्म शुरू किया

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के निर्देशों के विपरीत, उत्तर प्रदेश सरकार ने कई बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों में इको-टूरिज़म की शुरुआत कर दी है। इस निर्णय से वन्यजीव समुदाय, पर्यावरणविदों और नीति निर्धारकों में उबाल आ गया है। यह कदम उस समय उठाया गया है, जब भारत में बाघों की रक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं, खासकर जब मानव-बाघ संघर्ष बढ़ रहा है, साथ ही कुछ क्षेत्रों में बाघों की संख्या में कमी भी आ रही है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपने बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन में लिया गया यह कदम कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है, खासकर इस बात को लेकर कि बाघ संरक्षण और स्थानीय आजीविका तथा पर्यटन के बीच संतुलन कैसे बैठाया जाए।

 पृष्ठभूमि: भारतीय बाघ संरक्षण

बाघों का न केवल सांस्कृतिक बल्कि पारिस्थितिकीय महत्व भी है, और दुनिया के 70% बाघ भारत में रहते हैं। एक शीर्ष शिकारी के रूप में, बाघ अपने पर्यावरणों में पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे कि दलदल, घास के मैदान और जंगलों में। भारत में *प्रोजेक्ट टाइगर* के तहत 1973 में बाघों के संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए थे, और आज ये बाघ अभयारण्यों के रूप में जाने जाते हैं।

अब, बाघ अभयारण्यों को देश के सबसे प्रमुख वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र माना जाता है। प्रत्येक राज्य के पास प्रसिद्ध बाघ अभयारण्यों की सूची है, जैसे सुंदरबन, जिम कॉर्बेट, काजीरंगा और सुंदरबन। हालांकि, इको-टूरिज़म के क्षेत्र में काम करने वाले लोग यह चिंता जताते हैं कि यह संरक्षण के सिद्धांत को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन मुख्य क्षेत्रों में, जो बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के जानवरों को अपनी प्राकृतिक आवास में पनपने का मौका देने के लिए बनाए गए हैं। हालांकि, NTCA ने हमेशा यह कहा है कि बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों को मानवीय गतिविधियों से मुक्त रखा जाना चाहिए, ताकि बाघों और अन्य वन्यजीवों को कोई विघ्न न हो।

 उत्तर प्रदेश सरकार का निर्णय

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों में इको-टूरिज़म को अनुमति देने का प्रस्ताव, जैसे कि प्रसिद्ध दुधवा बाघ अभयारण्य, विशेषज्ञों और संरक्षण कार्यकर्ताओं से काफी आलोचना का शिकार हुआ है। राज्य सरकार का कहना है कि यह कदम रोजगार सृजन और पशु संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है, साथ ही यह स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बेहतर बनाने और टिकाऊ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी है।

दुधवा बाघ अभयारण्यम, जो नेपाल-भारत सीमा पर स्थित है, में बाघों की स्वस्थ जनसंख्या के साथ-साथ अन्य मृग प्रजातियां और संकटग्रस्त एक-सींग वाले गैंडे भी पाए जाते हैं। हालांकि, NTCA ने पहले ही इस रिजर्व के मुख्य क्षेत्र में पर्यटकों के प्रवेश पर गंभीर प्रतिबंध लगाए थे, जो इसके कुल क्षेत्र का आधा हिस्सा है। इसका उद्देश्य वन्यजीवों के महत्वपूर्ण आवासों में मानवीय हस्तक्षेप को न्यूनतम रखना था, ताकि जानवरों को अधिकतम संरक्षण मिल सके।

हालांकि, पिछले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश सरकार ने इन प्रतिबंधों को ढीला करते हुए पर्यटकों को मुख्य क्षेत्रों में प्रकृति सैर, वन्यजीव सफारी और पक्षी अवलोकन जैसी नियंत्रित इको-टूरिज़म गतिविधियों के लिए प्रवेश की अनुमति दे दी है। कुछ लोगों का कहना है कि हालांकि ये गतिविधियाँ पर्यावरण के अनुकूल दिखाई देती हैं, लेकिन ये अंततः संवेदनशील क्षेत्रों में स्थानीय वन्यजीवों की जनसंख्या को नुकसान पहुँचा सकती हैं।

 NTCA की भूमिका और नीतियाँ

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) *प्रोजेक्ट टाइगर* के कार्यान्वयन की निगरानी करने वाली सर्वोच्च संस्था है। इसके नियमों के तहत, बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों में पर्यटन संचालन पर प्रतिबंध है। NTCA का प्रमुख तर्क यह है कि इको-टूरिज़म भी बाघों और अन्य वन्यजीवों के साथ मानवीय संपर्क बढ़ा सकता है, जिससे उनके प्राकृतिक आवास और व्यवहार में बदलाव आ सकता है।

अध्ययनों से पता चलता है कि बाघ मानवीय गतिविधियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं, और वे उन क्षेत्रों से बच सकते हैं जहाँ अक्सर लोग रहते हैं। ऐसी गतिविधियाँ उनके प्रजनन पैटर्न को बाधित कर सकती हैं, शिकार में दक्षता को कम कर सकती हैं, और तनाव स्तर को बढ़ा सकती हैं। इसके अलावा, बढ़ते पर्यटन से शिकार के लिए अवैध गतिविधियों का भी खतरा बढ़ सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ दुर्लभ जानवर होते हैं। पर्यटन सुविधाओं के निर्माण से बाघों के आवासों का टुकड़ों में बंट जाना और उनके लिए उपयुक्त इलाके की खोज कठिन हो सकती है।

दूसरी ओर, NTCA के मानकों के अनुसार, बाघों के आवासों की अखंडता को बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। संरक्षण विशेषज्ञों का मानना है कि इन क्षेत्रों को मानवीय अतिक्रमण से मुक्त रखना चाहिए, क्योंकि बाघों और अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन और आवासीय विनाश का गंभीर दबाव है।

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 इको-टूरिज़म का पक्ष

इको-टूरिज़म के समर्थक यह तर्क करते हैं कि यह संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है और स्थानीय आबादी को टिकाऊ आजीविका के स्रोत प्रदान कर सकता है, भले ही NTCA और संरक्षणवादियों को इसका विरोध हो। दुधवा जैसे क्षेत्रों में जहाँ परंपरागत रूप से वन संसाधनों पर निर्भर जीवनशैली रही है, वहाँ इको-टूरिज़म को एक और टिकाऊ आर्थिक प्रणाली के रूप में देखा जा सकता है।

उत्तर प्रदेश सरकार का मानना है कि इससे स्थानीय लोगों को पर्यटन से जुड़ी व्यापारिक गतिविधियों, जैसे गाइडिंग, कैटरिंग और हस्तशिल्प, में भागीदारी मिलेगी, जिससे शिकार या अनधिकृत लकड़ी कटाई जैसी हानिकारक गतिविधियों पर निर्भरता कम हो सकती है और रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं। साथ ही, इको-टूरिज़म से बाघों और उनके आवासों का संरक्षण भी हो सकता है, क्योंकि यह स्थानीय समुदायों के लिए आय का स्रोत बन सकता है, बशर्ते इसे सही तरीके से प्रबंधित किया जाए।

इको-टूरिज़म से वन और वन्यजीवों के संरक्षण का महत्व अधिक लोगों के बीच फैल सकता है, विशेषकर उन लोगों में जो यह समझते हैं कि संकटग्रस्त प्रजातियों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा क्यों जरूरी है। इससे संरक्षण प्रयासों और नीतियों के प्रति अधिक समर्थन मिल सकता है।

पर्यावरण संरक्षण बनाम आर्थिक विकास

यह एक बड़ा सवाल खड़ा करता है कि क्या इको-टूरिज़म से आर्थिक विकास और संरक्षण के बीच सही संतुलन स्थापित किया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सबसे बड़ी चिंता हमेशा जैव विविधता के संरक्षण और बाघों और अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए पर्याप्त जगह सुनिश्चित करने की होनी चाहिए। हालांकि इको-टूरिज़म ग्रामीण समुदायों के लिए उच्च आय सृजन का अवसर हो सकता है, लेकिन इसे इस तरह से नियंत्रित किया जाना चाहिए कि यह संरक्षण को नुकसान न पहुँचाए। कड़े नियमों और पर्यावरणीय नियंत्रण के साथ-साथ समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करना इको-टूरिज़म को संरक्षण के लिए एक सहायक बल बना सकता है, न कि उसे खतरे में डालने वाला।

निष्कर्ष

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों में इको-टूरिज़म की शुरुआत ने भारत में बाघ संरक्षण के दृष्टिकोण को एक नया मोड़ दिया है। यह कदम, जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने और पशु संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने का उद्देश्य रखता है, इसके दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर गंभीर सवाल उठाता है, खासकर जब संवेदनशील पारिस्थितिकी प्रणालियों पर पर्यटन का असर हो सकता है।

यह कदम सफल होगा या नहीं, यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे किस तरह से प्रबंधित किया जाता है। उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि संरक्षण के मुद्दों का हमेशा सम्मान किया जाए और इको-टूरिज़म के संचालन से बाघों के आवासों का संतुलन न बिगड़े। सही संदर्भ में, इको-टूरिज़म स्थानीय लोगों और जानवरों दोनों के लिए एक आशाजनक भविष्य प्रदान कर सकता है। लेकिन यदि इसे गलत तरीके से लागू किया गया, तो यह दशकों के कठिन परिश्रम से किए गए संरक्षण प्रयासों को नष्ट कर सकता है। यह कदम भारत के अन्य राज्यों के लिए एक केस स्टडी बन सकता है, जो समान चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारतीय बाघों का भविष्य, लंबे समय में

 

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