वक्फ बोर्ड संशोधन बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पारित होने वाला है। संभल में जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर विवाद का मूल भी इसी तुष्टिकरण से जुड़ा हुआ है, इसलिए संभल में हुई हिंसा ने बीजेपी की योजना को और बल दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र चुनाव की जीत के बाद भाजपा मुख्यालय पर दिए अपने भाषण में वक्फ बोर्ड कानून के बहाने कांग्रेस की तुष्टिकरण वाली राजनीति पर हमला बोला।
मोदी के निशाने पर कांग्रेस:
महाराष्ट्र चुनावों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली मुख्यालय पर भाषण देते हुए राजनीतिक विरोधियों और उनके बहाने कई नीतिगत मुद्दों पर तीखी टिप्पणी की। मोदी का कहना है कि ‘जब भारत आजाद हुआ तब पंथ-निरपेक्षता की नींव पड़ी थी। लेकिन झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कांग्रेस ने तुष्टिकरण की नींव डाली। तुष्टिकरण के लिए उसने कानून बनाया। सुप्रीम कोर्ट को इस बात की परवाह नहीं हुई। मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने संविधान निर्माताओं पर विश्वासघात किया है, जो मैं बहुत जिम्मेवारी से कह रहा हूँ।
दशकों तक देश में कांग्रेस ने यही खेल खेला। तुष्टिकरण कानून बनाया। वक्फ बोर्ड इसका एक उदाहरण है। दिल्ली के लोग 2014 में सत्ता से जाते-जाते वक्फ बोर्ड को दिल्ली और आसपास की कई संपत्ति दी गई, जिससे वे चौंक जाएंगे। वक्फ बोर्ड बाबा साहेब के संविधान में नहीं था। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा किया ताकि वोटबैंक की राजनीति कर सके। उसने मृत्युदंड को संविधान में शामिल करने का प्रयास किया।’
वक्फ बोर्ड संशोधन बिल की तैयारी:
प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान से स्पष्ट है कि वक्फ बोर्ड संशोधन बिल शीघ्र ही लागू हो सकता है। हाल के भाषणों में प्रधानमंत्री मोदी ने वक्फ बोर्ड का उल्लेख किया है, जो सरकार को इस बिल पर गंभीर होने का संकेत देता है। 2024 के अंत से पहले ही सरकार यह बिल पेश करके पास भी कर सकती है। क्योंकि अगले साल बिहार और दिल्ली में विधानसभा चुनाव होंगे। सरकार इसे अपनी सफलता के रूप में जनता को दिखा सकती है। आज भी संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो गया है।
वक्फ बिल सबका ध्यान होगा। इस विशेष सत्र में पांच नए कानून पारित किए जाएंगे। वक्फ बिल पर सभी का ध्यान है। संसद की संयुक्त समिति वक्फ विधेयक बनाती है। जेपीसी बैठक में इस पर कई बार बहस हुई है। वक्फ बिल पर अब तक समिति ने 27 बैठकें की हैं। अर्थात् सरकार इसे ठंडे बस्ते में डालने की इच्छा नहीं रखती है। समिति इस शीतकालीन सत्र में संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। इसके बाद सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह इसे पारित करने की कोशिश करे।
अंबेडकर, संविधान और वक्फ बोर्ड:
भारतीय संविधान में वक्फ बोर्ड का नाम नहीं था। 1954 के वक्फ एक्ट ने वक्फ बोर्ड को बनाया था। भारतीय संसद ने वक्फ अधिनियम पारित किया, जो मुस्लिम धार्मिक और सामाजिक संस्थानों को नियंत्रित करेगा। पर कांग्रेस सरकारों ने इस कानून को धीरे-धीरे इतना मजबूत बनाया कि इसका व्यापक दुरुपयोग होने लगा। आज इस कानून की शक्ति इतनी बढ़ गई है कि यह देश के किसी भी राज्य में स्थित किसी भी जमीन को वक्फ बोर्ड की जमीन घोषित कर सकता है। साथ ही, वक्फ बोर्ड का दावा किसी भी स्थानीय कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। आज वक्फ बोर्ड के पास सेना और रेलवे के बराबर जगह है।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने भारत के कानून मंत्री पद से इस्तीफा देकर वक्फ बोर्ड को बनाया था। संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर आंबेडकर के विचारों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि वह वक्फ बोर्ड का कभी भी समर्थन नहीं करेंगे। केएम मुंशी, अल्लादी कृष्णास्वामी और अंबेडकर ने संविधान सभा में यूसीसी (यूनिफॉर्म सिविल कोड) का बचाव किया।
मुस्लिम नेताओं ने कहा कि इससे वैमनस्य बढ़ेगा। संविधान सभा में हुई बहसों से भी भीमराव आंबेडकर एक समान नागरिक संहिता के पक्ष में थे। वास्तव में, बीआर आंबेडकर इस तरह का बोर्ड बनाने की अनुमति कभी नहीं देते क्योंकि वक्फ बोर्ड की विचारधारा नागरिक संहिता की विचारधारा के विपरीत है।
शायद इसी वजह से प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच अपने भाषण में इस कानून को लेकर सख्त संदेश दिया। महाराष्ट्र चुनावों में सरकार की जीत से उसका मनोबल बढ़ा है।